कभी कभी समंदर को भी सोना चाहिए

I attended a session few days ago where some people were sharing their problems with a psychologist. I was a silent listener in that seminar. But in the evening of that day, when I was remembering some important moments of that session, I wrote this poem.

This poem is written in Hindi with a few words from Urdu language. The meaning of poem is cryptic as people may interpret differently as per their situation and perspective.

a poem on ocean in hindi with urdu words

कभी कभी समंदर को भी सोना चाहिए

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कभी कभी समंदर को भी सोना चाहिए
मैं कश्ती लेकर निकलू सफर पे
मगर उसे खबर नहीं होना चाहिए
अगर कश्ती कभी पलट भी जाए मेरी
तो उसपे किसी लहर की नज़र नहीं होना चाहिए
कभी कभी समंदर को भी सोना चाहिए

समझता हूँ मेरे अल्फ़ाज़ों से एक डर झलकता है
ना लड़ने की दरख़्वास्त मेरी कमज़ोरी सा लगता है
मगर मुझे लगता है कि
एक सख्त इंसान को भी कभी कभी रोना चाहिए
और इसलिए कभी कभी समंदर को भी सोना चाहिए

क्यूँ लड़ूँ मैं? कब तक? और किसके लिए?
क्यूँ मरूँ मैं? हर घड़ी सिर्फ़ उसके लिए
थकता हूँ मैं, टूटता भी हूँ
मुझे भी तो किसी की गोदी में सर रख कर सोना चाहिए
कभी कभी समंदर को भी शांत होना चाहिए

कभी कभी उसे भी मेरी तरह रोना चाहिए
उसे मेरी जगह होना चाहिए
मेरी सांसों में जो छटपटाहट है,
उसे उनका एहसास होना चाहिए
उसे भी मेरी तरह अकेले होना चाहिए
और अगर ये नहीं हो सकता तो
कभी कभी समंदर को भी सोना चाहिए


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Amit
Amit Author & Maintainer of many opensourse projects like fast-xml-parser, imglab, stubmatic etc. Very much interested in research & innovations.

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